सोमवार, 28 सितंबर 2009

purshon ke liye kaanun kyon nahi ?

कुछ दिन पहले एक समाचार पढ़ा ....पति का बदला लेने के लिए सिपाही पर पत्नी ने लगाया दुराचार का आरोप ....यह एक घटना नहीं है . , ऐसे कई मामले सामने आ रहे है जब महिला द्वारा यौन उत्पीडन का या बलात्कार का आरोप बाद में झूठा साबित हुआ .कई विवाहित लड़कियां  ससुराल छोड़ के मायेके वापस आ जाती हैं , और पति /सास -ससुर पे घरेलू हिंसा का आरोप लगाती है. जबकि वो ससुराल की मर्यादा में नहीं रहना चाहती . कई बार मुझे ऐसा लगता है कि आजकल पुरुष भी उतना ही पीड़ित है जितना महिला .....फर्क सिर्फ इतना है कि कोई भी महिला पुरुष /पति पर अत्याचार /अनाचार का केस दायर कर सकती है .जबकि पुरुषों के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है .मैंने परिवार परामर्श केंद्र में ऐसे ही अनेक केस देखे हैं .. ये भी एक सच्चाई है कि आज न जाने कितनी युवतियां नाम ,दाम और काम के लिए स्वयं पुरुष के सामने समर्पित होने में कोई संकोच नहीं करती .सच ओत ये है कि ऐसी महिलाएं पुरुषों का मानसिक बलात्कार करती है ... विश्वामित्र को रिझाने के लिए मेनका ने भी यही किया था ,शत्रु - राजा को परास्त करने  के लिए चाणक्य  रूपवती विषकन्या को भेजता  था  आज युवतियां स्वयं ये कर रही है . किसी भी  क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने का शॉर्ट कट रास्ता है. तो फिर यौन उत्पीडन का केस केवल पुरुष पर ही क्यों ?....जबकि गुनाहगार दोनों होते है..अमर मणि ,गुड्डू पंडित ,सच्चिदानन्द साक्षी महराज ........ऐसे जाने कितने उदहारण है. कितने ऐसे पति है जो हर संभव परिवार में तालमेल बिठाने कि कोशिश करते है और पत्नी सास -ससुर से अलग रहने कि जिद. .तो पुरुषों को भी ऐसी महियाओं के विरूद्व ऍफ़ .आर . आइ. दर्ज करने का अधिकार मिलना चाहिए. जब समानता की आवाज उठती है तो कानून में समानता क्यों नहीं ??????

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

चौक की कला


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यह १ देवोत्थान का और २ दिवाली का चौक है। कभी दादी -नानी बनाया करती थी । अब तो गोंव में भी करवा चौथ के कलेंडर दीखते हैं। हिंदू त्योहारों में इनका अलग ही सौन्दर्य था। चौक ,रंगोली ,भित्ति चित्र ,अल्पना सब अपना महत्व था। प्रत्येक त्यौहार के अलग चौक और भीती चित्र होते थे। मैंने खोये हुए चौक को बना कर सहेजा है। इसमे नील ,गेरू, खडिया ,सिंदूर,हल्दी ,कोयला का ही प्रयोग किया है। चौक जमीन को लीप कर पूजास्थल में बनते थे। जबकि भित्ति चित्र दिवार पे बनती थी। प्रकृति की निकटता के कारण इसमे चाँद ,सूरज,पशु पक्षी ,फूल पत्ती सींक से उकेरे जाते थे यह एक ऐसी कला थी जिसका मुकाबला चित्रकार हुसैन भी नही कर सकते। मै इस खोई हुई कला को सहेज रही हूँ। होली, रक्षाबंधन ,आदि हर त्यौहार के चौक और भित्ति चित्र की खोज कर रही हूँ । हरे रंग के लिए पत्ती को पिसती हूँ। मुझे इस काम मै मजा आ रहा है । गॉंव मै जब लड़कियों से चौक की जानकारी लेती हूँ तो वो मुझ पर हसंती है। उन्हें इस बारे मै जानकारी नही है। मुझे बुड्डी औरतों से पूछना पड़ता है। हम अपनी कला क्यों खोने दे ?