शनिवार, 4 दिसंबर 2010

शनिवार, 27 नवंबर 2010

कुर्सी प्राणायाम ---हठयोग से कुर्सियोग तक .........

कुर्सी पर नेता    
कुर्सी प्राणायाम ------
  हे मानव तू कर्म करना छोड़ -------धर्म को अपना ! धर्म से बढ कर कुछ नहीं !
धर्म में भी कुर्सी धर्म सर्वोपरि है . क्योंकि कुर्सीधर्म उधार -धर्म  नहीं है ,नगद धर्म है !इस धर्म में जीते जी सब मिल जाता है .इसलिए सब को छोड़ कुर्सी की शरण में आ जाओ .जिनके पास कुर्सी नहीं है ,वो निराश ना हों ,कुर्सी प्राणायाम करें ,!
 प्रातः काल  जागते ही सबसे पहले यह भावना करे ,कि हम कुर्सिवान हो गए .चित्त सांस पे ,ध्यान कुर्सी पे लगाओ .श्वांस लेते समय ध्यान करो कि जीवनदायनी कुर्सी को भीतर ले रहें हैं .यह कुर्सी योग का अनुलोम प्राणायाम है. प्रतिलोम (सांस बाहर छोड़ते ) में अपने भीतर के सदाचार ,इमानदारी को श्वांस के साथ बाहर निकाल दे .आँख बंद कर के भावना करें ,-हम कुर्सी सागर के मध्य कुर्सी शय्या पे विराजमान हैं .अब भावना करो कि हम कुर्सी युक्त है ,कुर्सी हम से सयुंक्त है ,!हम वो भक्त हैं ,जिसे कुर्सी से विभक्त नहीं किया जा सकता ,चाहे जितने इल्जाम आयें .डरो मत ,तुम्हे कुर्सी एक दिन जरुर मिल जाएगी .,यदि डरोगे तो कुर्सी पाने के संकल्प से दूर हो जाओगे .कुर्सी के वजन से जो कांडों और घोटालों के कारण कई मुखोटे सामने आये हैं ,उससे देश का राष्ट्रीय चरित उभर कर सामने आया है .कुर्सी जमीं पर टिकी रहती है .पर कुर्सीबाज ऊँचा उड़ता है .कुर्सी पे बैठते ही वह चरितवान हो जाता है .सब कांडों के बावजूद ...... कुर्सी पे तशरीफ़ रखते ही हर सड़क उनके घर तक पहुँचती अहि .जो कुर्सिवान नहीं है ,उनके लिए सारी सड़कें बंद होती है .जब कुर्सी कुलदेवी हो जाती है ,तो पूरा परिवार कुलवर्धन बन जाता है .इसलिए कुर्सीयोग करो ,कुर्सी को प्राप्त करो .
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सोमवार, 23 अगस्त 2010

शुक्रवार, 4 जून 2010

ग़ज़ल

 जिन ख्वाबों से नींद उड़ जाए +  ऐसे ख्वाब सजाये कौन
इक पल झूठी  तस्कीं  पा कर  सारी रात  गवाए कौन
यह तन्हाई यह  सन्नाटा दिल को मगर समझाए कौन
इतनी काली रात में आखिर  मिलने -मिलाने आये कौन 
फूल खिले तो चीख उठे सब  सहमे  चमन  में आग  लगी
हाय यह महरूमों की बस्ती  इसमें फूल खिलाये कौन
इक -दो धोखे हों तो यारों  दिल रखने को खा भी लें
यह तो उसकी आदत ठहरी  हर दिन धोखे खाए कौन