जिन ख्वाबों से नींद उड़ जाए + ऐसे ख्वाब सजाये कौन
इक पल झूठी तस्कीं पा कर सारी रात गवाए कौन
यह तन्हाई यह सन्नाटा दिल को मगर समझाए कौन
इतनी काली रात में आखिर मिलने -मिलाने आये कौन
फूल खिले तो चीख उठे सब सहमे चमन में आग लगी
हाय यह महरूमों की बस्ती इसमें फूल खिलाये कौन
इक -दो धोखे हों तो यारों दिल रखने को खा भी लें
यह तो उसकी आदत ठहरी हर दिन धोखे खाए कौन
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