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यह १ देवोत्थान का और २ दिवाली का चौक है। कभी दादी -नानी बनाया करती थी । अब तो गोंव में भी करवा चौथ के कलेंडर दीखते हैं। हिंदू त्योहारों में इनका अलग ही सौन्दर्य था। चौक ,रंगोली ,भित्ति चित्र ,अल्पना सब अपना महत्व था। प्रत्येक त्यौहार के अलग चौक और भीती चित्र होते थे। मैंने खोये हुए चौक को बना कर सहेजा है। इसमे नील ,गेरू, खडिया ,सिंदूर,हल्दी ,कोयला का ही प्रयोग किया है। चौक जमीन को लीप कर पूजास्थल में बनते थे। जबकि भित्ति चित्र दिवार पे बनती थी। प्रकृति की निकटता के कारण इसमे चाँद ,सूरज,पशु पक्षी ,फूल पत्ती सींक से उकेरे जाते थे यह एक ऐसी कला थी जिसका मुकाबला चित्रकार हुसैन भी नही कर सकते। मै इस खोई हुई कला को सहेज रही हूँ। होली, रक्षाबंधन ,आदि हर त्यौहार के चौक और भित्ति चित्र की खोज कर रही हूँ । हरे रंग के लिए पत्ती को पिसती हूँ। मुझे इस काम मै मजा आ रहा है । गॉंव मै जब लड़कियों से चौक की जानकारी लेती हूँ तो वो मुझ पर हसंती है। उन्हें इस बारे मै जानकारी नही है। मुझे बुड्डी औरतों से पूछना पड़ता है। हम अपनी कला क्यों खोने दे ?
आप अच्छा कार्य कर रही हैँ
जवाब देंहटाएंGood. I do Rangoli in my house in diwali
जवाब देंहटाएंअरे वाह.....क्या बात है.....बहुत ही खूब.... सच......!!
जवाब देंहटाएंमैंने खोये हुए चौक को बना कर सहेजा है। इसमे नील ,गेरू, खडिया ,सिंदूर,हल्दी ,कोयला का ही प्रयोग किया है। चौक जमीन को लीप कर पूजास्थल में बनते थे। जबकि भित्ति चित्र दिवार पे बनती थी। प्रकृति की निकटता के कारण इसमे चाँद ,सूरज,पशु पक्षी ,फूल पत्ती सींक से उकेरे जाते थे यह एक ऐसी कला थी जिसका मुकाबला चित्रकार हुसैन भी नही कर सकते।
जवाब देंहटाएंआप की मेहनत रंग लायेगी और शायद ला भी रही है, लेकिन एक बात खटने वाली यह है कि किसी कलाकार को किसी से तुलना करना अपने हूनर के समक्ष रखकर यह कतई शोभा देने वाली बात नहीं कही जा सकती, मै हूसैन साहब के बारे में पढा, सूना,हूं नजदीक से देखा नहीं उनको, लेकिन वह भी एक महान कलाकार माने जाते हैं, उछलकूद की कला ज्यादा दिनों तक जिन्दा नहीं रह सकती, यह हमें सभी को समझना चाहिए, हूसैन साहब की कला विधा आप से एक दम अलग है, उनके रंगों की दुनिया और तकनीक अलग है, वो अपना प्रचार इस प्रकार से भी नहीं करते दीखते हैं, हां आपकी कला और खोती जा रही रंगो की तकनीक को जिन्दा करने की मेहनत को मै सलाम करता हूं
निश्चित रूप से आप नेक काम कर रही हें
मेरा बधाई शुभकामनाएं हैं आपके साथ
अरूण कुमार झा
उम्दा प्रयास है आपका, यह तो गुम हो गई कला है। मैंने जनजातीय कला पर शोध किया है यूजीसी प्रोजेक्ट के तहत, तब मेरा इससे साक्षात्कार हुआ।
जवाब देंहटाएंझा महाशय ,
जवाब देंहटाएंदुराग्रह से ग्रसीत विक्रीत और कुरूप मानसिकता वाले ,हुसैन को आप कलाकार कहते हैं और डॉ.निरुपमा जी को ऐसे दुष्ट के विषय में ,सिख देते है ,यहकहाँ तक उचित है?
झा महाशय ,
जवाब देंहटाएंदुराग्रह से ग्रसीत विक्रीत और कुरूप मानसिकता वाले ,हुसैन को आप कलाकार कहते हैं और डॉ.निरुपमा जी को ऐसे दुष्ट के विषय में ,सिख देते है ,यहकहाँ तक उचित है?
nice
जवाब देंहटाएंडॉ. वर्मा जी ,
जवाब देंहटाएंइस महत्व पूर्ण रचना के लिए आप बधाई कि पात्र
हैं.आप लुप्त होती कला कों सहेज कर आने वाली पीढी
के रख रही हैं .आज किसे फुरसत है ,इसे करने का.
एक बार फिर बधाई .
प्रदीप श्रीवास्तव
निजामाबाद